आज मुझे फौज की नौकरी से जुड़े 12 साल हो गए हैं । कम उम्र में ही इस सिस्टम में आ गया था । वक़्त कितनी जल्दी उड़ता जाता है, जैसे कल की ही बात थी ।
उस दिन लखनऊ ARO से फाइनल सलेक्शन होने के बाद मैंने माँ को बताया – “सलेक्शन तो हो गया है माँ पर पोस्टिंग बहुत दूर दे रहे हैं, अरुणाचल ! चीन बॉर्डर पर । यहाँ से 3000 km दूर पहाड़ी ट्राइबल एरिया है ।महीनों महीनों भर घर नहीं आया करूंगा।”
माँ सक्क रह गई … या कहो कि डर गई ।
” इतनी दूर अकेले नौकरी करने नहीं जाने दूँगी । यहाँ प्राइवेट में जो 5-7 हज़ार मिल रहे हैं वो काफी हैं अपने गुज़ारे के लिए। तुझे तो चाय भी बनानी नहीं आती । अकेले नहीं रह पाएगा वहाँ जंगल पहाड़ों में ।”
पर मुझे जाना था तो मतलब जाना था । बेरोज़गारी का कीड़ा इंसान को धीरे-धीरे मारता है । मेरा निश्चय था कि चाहे काला पानी पोस्टिंग दो ! जाऊँगा मतलब जाऊँगा ही ।।
माँ को रोता छोड़ कर, एक दोस्त से 15 हज़ार रुपये उधार ले कर मैं अकेला ही चला गया था । उधार इसलिए लेने पड़े कि तब आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी हमारी ! और उधर सेटल होने के पैसे नहीं थे।
सब सलेक्ट हुए लड़को के भाई या बाप साथ मे जा रहे थे ।
पर अपना ना कोई भाई था ना बाप ना ही गार्जियन । ले दे कर एक माँ थी, वो भी गाँव की साधारण सीधी महिला मेरे रिश्तेदार / ताऊ/ चाचा/ मामा / और उनके लड़के जो हर तरह से वेल सेटल्ड थे, उन्होंने ना साथ चलना ज़रूरी समझा ना कुछ पैसे दे कर मदद की ।
तो फाइनली मैं अकेला ही निकल पड़ा था एक बस्ते में 2 जोड़ी कपड़े और ज़रूरी डॉक्युमेंट्स डाल कर ।
मैं जहाँ जा रहा था वहाँ के लोग, चेहरे, सड़कें, मैदान, पेड़ मेरे लिए नए थे । मेरे लिए वहाँ की बोली-भाषा, खाना, सभ्यता और जलवायु सब कुछ नया होने वाला था ।
जीवन की असली परीक्षा अब शुरू होने जा रही थी ..
टर्मिनल 3 पर कुछ लड़कों से परिचय हुआ ! कोई गोवाहाटी कोई डिब्रूगढ़ कोई बंगाल जा रहा था । सभी खुश थे । खुश तो मैं भी था । पर अंदर एक उदासी और अज्ञात भय था जिसे मैं सबसे छिपा रहा था ।
बाबू मोशाय ! घर के जो बड़े लड़के होते हैं ना , उनको बड़ा, और सख़्त दिखना पड़ता है सबके सामने ! पर वो वास्तव में उतने बड़े नहीं होते ।
Today it has been 12 years since I joined the army job. Came into this system at an early age. Time flies so quickly, like it was yesterday.
That day after finals selection from Lucknow ARO, I told my mother – “Selection has been done, but posting is very far away, Arunachal! At the China border. 3000 km away from here is the hill tribal area. Won’t come home for months. “
Mother is left in trouble … Or say she got scared.
“Won’t let go to work that far alone. The 5-7 thousand you are getting here in private are enough to survive. You don’t even know how to make tea. Won’t be able to live alone there in the mountains. “
But if I wanted to go, I meant to go. The worm of unemployment kills a person slowly. I was determined to post black water! I will go means I will go.
Leaving my mother crying, borrowing 15 thousand rupees from a friend and went alone. We had to take loan because our economic situation was not good then! And there was no money to settle down.
Brothers or fathers of all selected boys were going together.
But I neither had any brother nor father nor guardian. There was a mother in the village, that too an ordinary straight woman, my relative / uncle / uncle / and their boys who were well settled in every way, they neither thought it was necessary to walk together nor helped by giving some money.
So finally I left alone by putting 2 pairs of clothes and necessary documents in a bag.
The people, faces, streets, grounds, trees where I was going were new to me. For me there speech, food, civilization and climate everything was going to be new.
The real test of life was going to start now..
Got introduced to some of the boys at Terminal 3! Someone was going to Guwahati, someone Dibrugarh, someone was going to Bengal. All were happy. I was also happy. But inside there was a sadness and unknown fear that I was hiding most.
Babu Moshay! The big boys of the house have to look big and tough in front of everyone! But they really aren’t that big.